महिलाओं पर बढ़ते अपराध के खिलाफ एकजुट हों
कहने को तो हमारे देश में देवी के रूप में स्त्री की पूजा होती है. लेकिन पूरे देश में हम क्या देख रहें हैं. हाल के दिनों में पूरे देश में महिलाओं पर यौन हिंसा सहित विभिन्न तरह के अत्याचार डरावने तरीके से बढ़ें हैं. महिलाओं पर, नाबालिक लड़कियों तथा छोटे-छोटे बच्चों के साथ दुष्कर्म की घटनाओं में तेजी से इजाफा हो रहा है. इस तरह की घटनायें किसी एक राज्य या शहर की नहीं है बल्कि प0 बंगाल, बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश तथा अन्य राज्यों में भी पिछले ही दिनों बलात्कार तथा छेड़-छाड़ की कितनी ही घटनायें प्रकाश में आ रहीं हैं. हरियाणा में ही पिछले दिनों बलात्कार सहित इज्जत के नाम पर हत्या के कई मामले सामने आयें हैं. इनमें से कई घटनाओं में दलित महिलाओं तथा बच्चियों को इस घिनौने अपराध का निशाना बनाया गया है. राजधानी दिल्ली तो जैसे महिलाओं के खिलाफ अपराध की ही राजधानी बनकर रह गई है. हाल ही में दिल्ली में चलती बस में मेडिकल की छात्रा के साथ दिल दहलाने वाली गैंग रेप का घिनौना मामला सामने आया जिसमें लड़की की मौत हो गई. इस घटना ने पूरे देश को आक्रोशित कर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है. इस घटना पर एनडीटीवी नाम के एक चैनल में हुई परिचर्चा के दौरान यह बात सामन आयी कि इस तरह की घटनायें पूरे देश में विशेषकर सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोज-बरोज हो रहीं हैं लेकिन वैसे मामले ही सामने आतें हैं जिन्हें मिडीया द्वारा खास जगह दी जाती है. और इन मामलों को भी लोग कुछ दिनों के बाद भूल जाते हैं. नेशनल क्राईम रिकाड्र्स ब्युरो के अनुसार 1971 से 2011 तक दुष्कर्म के मामलों में 873 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. 2010 के मुकाबले 2011 में दुष्कर्म के मामले 8 प्रतिशत बढ़े हैं. ये आंकड़े सिर्फ दुष्कर्म के खिलाफ दर्ज मामलों के हैं लेकिन हमारे समाज में बहुत सारे दुष्कर्म के मामले सामाजिक व पारिवारिक दबाव, भेदभाव, बदनामी का डर इत्यादि के कारण दर्ज ही नहीं हो पाते हैं. वहीं महिलाओं को दुष्कर्म के साथ-साथ अन्य तरह के गंभीर अपराध से भी संघर्ष करना पड़ता है. फिर भी उपरोक्त आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि विभिन्न तरह के कानून रहने के बावजद महिलाओं के प्रति दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध तेजी से बढ़ रहें हैं.
झारखण्ड की तो स्थिति इतनी खराब है कि एक तरफ तो यहां सरकार बिटिया वर्ष मना रही है वहीं दूसरी तरफ झारखण्ड की राजधानी रांची समेत अन्य कई जगहों पर महिलाओं पर उत्पीड़न के मामले में भारी बढ़ोत्तरी हुई है. चिंता की तो बात यह है कि राज्य के पुलिस महानिदेशक ने भी महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराध को रोकने में लाचारी व्यक्त की है. वर्ष 2008 से 2011 के बीच यहां बलात्कार के 3200 से ज्यादा मामले दर्ज किये गए. अभी एक सप्ताह के अन्दर ही रांची में 17 वर्षीय जूही खान और मोनू मनिता की आत्महत्या भी यौन ंिहंसा के कारण ही हुई है. वहीं रामगढ़ के गिद्दी में स्कूली छात्रा के साथ दर्दनाक रूप से गैंग रेप हुआ है, रांची में दिन दहाड़े स्कूल व काॅलेज की छात्राओं के साथ छेड़-छाड़ आम हो गया है. स्थिति यह है कि आज के दौर में नव उदारवादी बाजारवादी संस्कृति के हमले से रिश्तों के लिहाज के सामाजिक मूल्य छिन्न - भिन्न हो गयें हैं. पुलिस इन अपराधों को अनदेखा ही करने की कोशिश करती है. इन अपराधों के खिलाफ न तत्परता से कदम उठाये जाते हैं और ना ही कड़ी कार्रवाई की जाती है. इसी का नतीजा है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध के जो मामले अदालत तक पहुंचते भी हैं, उनमें से 4 में से 1 में ही अपराधी को सजा मिल पाती है. यह विफलता, महिलाओं व युवतियों के बीच असुरक्षा फैला रही है.
इधर सामंती तथा रूढ़ीवादी ताकतों ने इन हालात का फायदा उठाकर, महिलाओं के अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं पर हमले तेज कर दिये हैं. कोई कह रहा है कि लड़कियों को मोबाईल फोन न दिया जाय, जीन्स न पहनने दिया जाय, तो कोई कह रहा है कि महिलाओं को अकेले घर से बाहर न निकलने दिया जाय, कुछ स्वयंभू खाप पंचायतों ने तो यह फरमान ही दे दिया कि दुष्कर्म से बचाने के लिए, व्यस्क होने से पहले ही लड़कियों की शादी कर दी जाय. यह रास्ता महिलाओं की सुरक्षा का नहीं है, असरुक्षा का फायदा उठाकर उनके अधिकारों का गला घोंटने और मुख्य मुद्दे से समाज का ध्यान भटकाने का है. इसलिए यह जरूरी है कि महिलाओं पर बढ़े रहे विभिन्न तरह के हमलों को रोकने के लिए सही और वैज्ञानिक सोच के साथ सही रास्ता अपनाते हुए समाज को इसके लिए जागरूक किया जाय. इसके लिए जरूरी है कि महिलाओं के प्रति बढ़े रहे अपराध को रोकने के लिए सख्त कानून बनाकर इन मामलों की सुनवाई त्वरित गति से की जाय ताकि दोषियों को जल्द सजा दिलायी जा सके. इसके साथ इस मुद्दे को सिर्फ घटना विशेष तक सीमित न रखते हुए इसे एक राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर व्यापक व सघन जनअभियान चलाया जाय ताकि महिलाओं के प्रति विकृत मांसिकता वाले लोगों, सामंती व रूढ़ीवादी ताकतों को समाज से अलग-थलग किया जा सके.
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