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Friday, December 2, 2011

गुम होते झारखण्ड के बच्चे



गुम होते झारखण्ड के बच्चेः Shashikant Singh
 सरकार चुप, सीबीआई ने खड़े किये हाथ

झारखण्ड के शिक्षा जगत में एक बेहद शर्मनाक घटना सामने आया. रांची विश्वविद्यालय के एंथ्रोपोलाॅजी विभाग को सितंबर 2010 में यह जिम्मेवारी सौंपी गई कि अपनी देखरेख में वह मानव तस्करी पर पीजी डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरू करे. स्ववित्त प्रबंधन के आधार पर शुरू की गई इस महत्वाकांक्षी व गंभीर पाठ्यक्रम से न केवल पलायन, बल्कि विस्थापन पर भी नियंत्रण होगा. इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में रोजगार का सृजन होगा. लेकिन ना हि रांची विश्वविद्यालय ने और ना ही संबंधित विभाग ने इसमें कोई दिलचस्पी दिखाई. हद तो यह हो गई कि राज्य के छात्रों को इसकी जानकारी तक नहीं हुई जबकि झारखण्ड जैसे राज्य के लिए यह काफी अहम था.
मानव तस्करी के मामले में झारखण्ड दे’ा के प्रमुख तीन राज्यों मे से एक है. कुल लापता बच्चों का स्पष्ट आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है लेकिन युनिसेफ के आंकड़ो के अनुसार पिछले 11 वर्षों में राज्य से एक लाख लड़कियां गायब हुई हैं. इनमें से 18 वर्ष से कम उम्र की 33 हजार लड़कियां शामिल हैं. इसके अलावा हर साल औसतन  1.25 लाख लड़कियां पढ़ाई व अन्य कार्यों के लिए राज्य से पलायन कर रही है. ट्रैफिकिंग की सार्वधिक घटनाएं आदिवासी बहुल दुमका, पाकुड़, साहिबगंज, हजारीबाग, लोहरदगा, गुमला, पलामू व प0 सिंहभूम में होती हैं.  गरीबी, जागरूकता की कमी और स्थानीय स्तर पर रोजगार के अभाव की वजह से यहां के लोग रोजगार के लिए लड़कियों को बाहर भेजने पर आसानी से तैयार हो जातें हैं. स्वाभाविक पलायान व विस्थापन के कारण भी बड़ी संख्या में लोग राज्य के बाहर हैं. 
यह सच्चाई तब सामने आयी जब रांची सदर अस्पताल की एक नर्स सु’ााना केरकेट्टा ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर लापता बच्चों को खोजने की मांग की थी. सु’ााना ने कहा था कि सिमडेगा निवासी अपने भतीजे रंजीत (7) व अनुप को जीएंडीएच हाईस्कूल में दाखिला दिलाया था 7 अक्टूबर 2010 को दोनों बच्चे स्कूल गए पर लौटे नहीं. फिर उन्हें एक फोन आया, जिसके बाद उन्होंने तीन व्यक्तियों के खिलाफ नामकुम थाने में नामजद प्राथमिकी दर्ज कराई लेकिन आज तक बच्चों का सुराग नहीं मिला. हाईकोर्ट ने रंजीत व अनुप किस्पोट्टा को तला’ा करने की जिम्मेवारी सीबीआई को दी थी. लेकिन दे’ा की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई ने इस मामले से अपनी हाथ खंीच ली. सीबीआई के अधिवक्ता मोख्तार खान ने 28 नवंबर 2011 को कोर्ट के समक्ष यह बयान दिया कि जांच एजेंसी मामलों की बोझ से दबी है. उसके पास संसाधनो की कमी है. ऐसे में इस मामले की जांच करना संंभव नहीं है. हाईकोर्ट ने इस मामले के साथ ही यह बताने को भी कहा था कि नाबालिग बच्चे ही क्यों गायब हो रहें हैं. 
इस पूरे प्रकरण की गंभीरता और सरकार व सरकारी एजेंसियों द्वारा कोई ठोस पहल नहीं लिये जाने के कारण अब राज्य के लापता बच्चों के मामले में झारखण्ड इाईकोर्ट ने सख्त रूख अपना लिया है. चीफ जस्टिस पीपी भट्ट की खंडपीठ ने इस मामले में सरकार से विस्तृत ब्योरा मांगा है. सरकार से पूछा कि राज्य के कितने बच्चे लापता हैं? कहां-कहां मामले दर्ज हैं? इनकी तला’ा के लिए क्या कदम उठाए गए? इसके बाद अदालत ने इस मामले पर सुनवाई के लिए 12 दिसंबर की तिथि तय की है. इस मामले के फैसलों और उसके नतीजे ही यह तय कर पायेंगे कि इस गंभीर प्रकरण का भविष्य क्या है. लेकिन यह काफी आ’चर्यजनक है कि आखिर क्यों सीबीआई ने इस मामले से हाथ खड़ी कर ली. क्या लाखांे बच्चे और उनका भविष्य सीबीआई के लिए कोई मायने नहीं रखता? क्या यह संभव है कि सीबीआई जैसी देश की सबसे बढ़ी जांच एजेंसी ने इस मामले से हाथ  खींच लिया है तो क्या राज्य की जांच एजेंसिंया उन्हंे खोज पयंेगी जो खुद संसाधनो का रोना रोतीं हैं और उनके पास भी काफी मामले लंबित पड़ी हैं. खैर जो भी हो अब तो एक ही सवाल है कि उन बच्चों को कैसे खोजा जाए और उन्हें कैसे घर वापस लाया जाए. आये दिन लगातार मानव तस्करी पर राज्य मंे कई कार्यक्रम होते रहते हैं लेकिन अभी तक इतने खर्चों के बाद भी इस गंभीर मसले पर बहस और रिपोर्ट जमा करने के अलावा कोई और पहल नहीं लिया गया है. इस क्षेत्र मेंे कई सामाजिक और सरकारी मदद प्राप्त संगठन भी काम कर रहें हैं. इसलिए यह जरूरी है कि झारखण्ड हाई कोर्ट इन संगठनों से भी उनके काम की रिपोर्ट मांगे. 
मानव तस्करी एक ऐसा मामला है कि इसपर लापरवाही बर्दास्त नहीं की जा सकती, इसलिए हाई कोर्ट का सख्त रूख जायज है. लेकिन केन्द्र सरकार को भी इस मामले पर गंभीर कदम उठाने चाहिए और गृह मंत्रालय को भी इस मामले में अपना रूख स्पष्ट करना चाहिए. झारखण्ड में पलायन पहले से ही एक गंभीर मसला बना हुआ है. हम आये दिन यह रोना रोते हैं कि झारखण्ड की गरीब लड़कियां और लड़के रोजगार के नाम पर दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र जैसे राज्यों और बड़े शहरों में जाते हैं जहां उनका खुलकर शोषण और उत्पीड़न होता है. इस मामले में ईंट भट्टों, निर्माण क्षेत्र, घरेलु कामगार, कपड़ा मिलों, चीनी मिलों की स्थिति तो और भी खतरनाक है. यहां तक कि कई मामलों में इनका संपर्क भी अपने परिवार से तोड़ दिया जाता है और वे एक तरह से गुलाम बन जाते हैं. इसके बावजूद इन मामलों में व्यहारिक पहल की कमी बनी हुई है. इसलिए इस मामले में सख्त कदम उठाना और उन कारणों को खोजना जिसके कारण यह समस्या पैदा हो रही हैं, मानव तस्करी को रोकने में मदद करेगी. हाईकोर्ट की पहल जायज है और अब राज्य व केन्द्र सरकार, श्रम विभाग, सामाजिक संगठन, राजनीतिक पार्टियां और रांची विश्वविद्यालय को इस मामले में अपना रूख स्पष्ट करना चाहिए और राज्य की जनता को जवाब देना चाहिए. 
47 प्रतिशत से ज्यादा गरीबी वाले झारखण्ड के ग्रामीण इलाकों की स्थिति अब किसी से छिपी नहीं है. राज्य में प्राकृतिक संसाधनों और विकास की तमाम संभावनाओं के बावजूद राज्य में असमान विकास, खेती, कुटिर और लघु उद्योगों की अनदेखी जैसे कई कारण हैं जिसके कारण यह समस्या पैदा हो रही है. इसके साथ ही गा्रमीण इलाकों में केन्द्र व राज्य प्रायोजित योजनाओं के क्रियान्वन में काफी अनियमिततायें और भ्रष्टाचार है. इस कारण ग्रामीणों व अत्यंत गरीबों को इसका समुचित लाभ नहीं मिल रहा है. वहीं गांवों में जरूरी व रोजगारपरक शिक्षा की कमी भी इसका प्रमुख कारण है. उपलब्ध संसाधनों को विकास का जरिया बनाकर उसकी बुनियाद को मजबूती देना, पंचायत स्तर से गांव तक स्वस्थ्यय सुविधाओं की नींव को मजबूत करना और प्राथमिकता के तौर पर पंचायत स्तर पर ही रोजगारपरक शिक्षण व प्रशिक्षण की व्यवस्था कर गांव स्तर पर ही रोजगार को विस्तृत करना, ये ऐस कदम हैं जिससे गांव स्तर तक विकास की नींव मजबूत बनेगी और राज्य का समान विकास हो पाएगा और राज्य को बदहाली से निकालने के लिए विकास सबसे पहला शर्त है. 

शशिकान्त

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