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Monday, November 26, 2012

जन आकांक्षाओं को पूरा करने में विफल युपीए 2 की सरकार

केन्द की कांग्रेसनीत् युपीए 2 की सरकार द्वारा हाल के दिनों में विकास के नाम पर आर्थिक सुधार के बहाने अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाली बोझ को आम जनता पर और मुनाफे के रूख को देशी विदेशी कंपनियों की तरफ मोड़ दिया गया है. ये कदम तब उठाये जा रहें हैं जब देश की जनता लगातार बढ़ती महंगाई और सामाजिक सुरक्षाओं में की जा रही कटौतियों से परेशान है और इन नीतियों के खिलाफ पूरे देश में विरोध के स्वर गूंज रहें हैं. लेकिन नव उदारवादी आर्थिक नीतियों से पीछे हटने के बजाय युपीए सरकार बेफिक्र होकर अर्थव्यवस्था को देशी-विदेशी काॅरपोरेट के पक्ष में मोड़ रही है. डीजल और पेट्रोल के दामों में की गई बढ़ोत्तरी का सीधा असर महंगाई पर पड़ा है और घरेलु गैस में सब्सीडी कम करने और साल में 6 सब्सीडीयुक्त सिलेंडर देने के फैसले से आम आदमी के बजट पर गंभीर हमला हुआ है. हाल के दिनो में युरिया के दामों में 50 रू0 प्रति टन की बढ़ोत्तरी की गई है. इस प्रकार की कार्यवाई जनता पर और बोझ बढ़ाएगा और कीमतों में और भी बढ़ोत्तरी करेगा. युपीए सरकार को खाद्य के मूल्यों में हो रही वृद्धि पर कोई चिंन्ता नहीं है जो कि 10 प्रतिशत के दर को पार कर गया है. खाद्यान्नो और अन्य जरूरी वस्तुओं के वायदा व्यापार के कारण जनता पर बोझ और बढ़ा है.
युपीए 2 की सरकार द्वारा नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के हमले के कारण देश के करोड़ांे खेतिहर मजदूर और अन्य गरीब तबकों के जीवन पर दुष्प्रभाव के असर को और बढ़ायेेगा. मनमोहन सिंह सरकार द्वारा पूर्व से कम सब्सीडी युक्त तेल, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य क्षेत्रों में एक तरफ सब्सीडी और घटाया जा रहा है और वहीं दूसरी तरफ काॅरपोरेट जगत को पिछले वित्तीय वर्ष में 5.27 लाख करोड़ की सब्सीडी दी गई और उन्हें टैक्स में छूट के नाम पर और राहत दी जा रही है. विकासशील देशों में भारत का दर्जा कूपोषण, अशिक्षा, बाल मृत्यु की दर में सबसे उचाईं पर है. आज उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य एक व्यापार हो गया है और खेतिहर मजदूरों व गरीब तबके के पहुंच से बाहर हो गया है. खेती के क्षेत्र में लागत बढ़ने के कारण खेती में किसानों को बड़े पैमाने पर नुकसान हो रहा है और इसमें काम कर रहे खेतिहर मजदूरों के लिए काम की उपलब्धतता में भी भारी कमी आई है. उवर्वरक की कीमतों में 300 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है जबकि समर्थन मूल्य लगभग जस का तस है. निजी क्षेत्र को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार काॅरपोरेट खेती को बढ़ावा दे रही है. यहां तक कि गरीब ग्रामिणों और खेतिहर मजदूरों के रोजगार के लिए मनरेगा जैसी वैकल्पिक व्यवस्था में आंवटन में कमी कर इसे कमजोर किया जा रहा है.

महंगाई से निपटने के नाम पर सरकारी गोदामों में पड़ी 10 मिलियन टन अतिरिक्त खाद्यान्नों को मिल मालिकों और बिस्कुट उत्पादकों को खुले बाजार की विक्रय नीति के तहत निलामी कर बेचे जाने के फैसले का आम जनता द्वारा     विरोध किया जाना चाहिए. अगले चार महिनों तक प्रति माह 25 लाख टन अनाज को बिना नफा नुकसान के निलामी के जरिए बेचा जाएगा. इन फैसलों के जरिए सरकार खाद्यान्न में गरीबों को मिलने वाली सब्सीडी में कटौती कर इसका लाभ बड़ी कंपनियां समेत व्यापारियों और बड़े उत्पादनकर्ताओं को पहुंचा रही है. माननीय उच्चतम न्यायल के आदेश के बावजूद सरकार बड़े पैमाने पर खाद्य अनुदान को बड़ी कंपनियों समेत व्यापारियों को लाभ देने के लिए हस्तांतरित कर रही है ना कि जो लोग भूख और खाद्य असुरक्षा में हैं, उनके लिए. सरकार का यह कहना पूरी तरह गलत है कि इससे मूल्य नियंत्रित होंगे.

महंगाई से निपटने में युपीए सरकार की पूर्ण विफलता के कारण खाद्यान्न महंगाई दर अगस्त ताह में 12.03 प्रतिशत तक चला गया. यह बढ़ोत्तरी हाल में डीजल के दामों की गई वृद्धि के पहले की है जिसका अर्थ है कि अभी यह दर और बढ़ेगी. खाद्यान्न की दर में वृद्धि के कारण उपभोक्ता मूल्य सूचकांक अगस्त माह में 10.03 प्रतिशत तक था, वहीं थोक मूल्य सूचकांक 7.55 प्रतिशत था. ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, द0 अफ्रिका) में भारत में खुदरा महंगाई दर सबसे ज्यादा है.

यदि सरकार महंगाई दर पर नियंत्रण रखना चाहती है तो उसका सबसे कारगर कदम होगा जनवतिरण प्रणाली को और ज्यादा मजबूत करना. वर्तमान में सरकारी गोदामों में  5 करोड़ टन अतिरिक्त अनाज पड़ा हुआ है. गोदामों में पड़े अतिरिक्त अनाज को निलामी या निर्यात के माध्यम से बेचने के बजाय सरकार को चाहिए कि वह एपीएल और बीएपीएल को खत्म कर सभी के लिए ज्यादा से ज्यादा 2 रू0 प्रतिकिलो की दर से प्रतिमाह 35 किलो अनाज  उपलब्ध करायें. लेकिन सरकार खाद्य सुरक्षा बिल के माध्यम से जनवितरण प्रणाली को कमजोर कर लोगों को खाद्य सुरक्षा देने के बजाय उन्हें बाजार के भरोसे छोड़ देने का प्रयास कर रही है. सरकार के इस कदम से धनी और मध्यम वर्ग पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन गरीब व मजदूर तबके के उपर बोझ और बढ़ेगा. दूसरी तरफ जनवितरण प्रणाली व गैस में सब्सीडी खत्म कर लोगों के खाते में सीधे नकद देने के निर्णय से भी भ्रष्टाचार को ही बढ़ावा मिलेगा और इसका सीधा फायदा खुले बाजार को मिलेगा ना कि आम आदमी को. आज भारत जैसे देश में जहां अमिरी व गरीबी के बीच का अन्तर तेजी से बढ़ रहा है, यदि सरकार को नवउदारवादी आर्थिक नीतियों पर आगे बढ़ने से रोका नहीं गया तो वह दिन दूर नहीं जब हम वैश्विक बाजार के गुलाम हो जायंेगे जिसका नियंत्रण कल्याणकारी सरकार के बजाय साम्राज्यवादी पूंजीवादी शक्तियों के हाथों में होगा..............................................................................शशिकान्त

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