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Tuesday, June 14, 2011

बाबाओं की लीला

बाबाओं की लीला : Shashikant Singh

काला धन इस दे’ा में एक बड़ा मुद्दा है. यह राशि कितनी है इसका सही आकलन लगाना मुश्किल है। वाशिंगटन स्थित ग्लोबल फाईनेन्सियल इन्टेग्रिटी ने आकलन लगाया है कि वर्तमान में भारत से बाहर जा रहा धन करीब 462 बिलियन डाॅलर (207900 करोड़ रू0) के आस-पास है यानि विदेशों में जमा काला धन इससे भी कहीं ज्यादा है जबकि भारत पर विदेशी कर्ज मात्र 230 बिलियन डाॅलर यानी काले धन का आधा ही है।
इस संगठन का आकलन यह भी है कि टैक्स की चोरी, भ्रष्टाचार और अपराध से कमाये गये इस काले धन का देश से बाहर जाने की दर 1991 के बाद (उदारवाद की नीतियों के लागू होने के तुरन्त बाद) तेजी से बढ़ी है। उल्लेखनीय है कि इस अवधि में देश में कांग्रेस और भाजपा गठबंधन की ही सरकार रही है। अभी हमारा देश काला धन, महंगाई और भ्रष्टाचार इन तीन मुद्दों की प्रेत छाया से भयभित है लेकिन यह भय उन लोगों को नहीं है जो इनके लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेवार हैं। इस भय के शिकार देश के आम लोग हैं जिनकी जेब ढीली कर इस देश के धनकुबेर और धन जमा कर रहें हैं और आम लोग रोज बढ़ती महंगाई और बेशर्मी से मुंह चिढ़ाती भ्रष्टाचार के कारण किसी तरह जीवन यापन कर रहें हैं। देश के तमाम बड़े राजनेता टी.वी चैनलों और अखबारों में बड़ी बड़ी बाते करते दिख जातें हैं और हमें उनके आश्वासनों से ही संतोष कर लेना पड़ता है। लेकिन अब तो आश्वासनों का भी दौर चला गया और लगता है जैसे ये मुद्दे मजाक बन गये हों। अन्ना हजारे ने लोकपाल बिल के दायरे में प्रधानमंत्री तक को लाने की बात की जो जायज भी हैं क्योंकि सभी जानते हैं कि यदि मधु कोड़ा और ए. राजा जैसे लोग प्रधानमंत्री बन जाएं तो वे देश की लुटिया ही डुबा देंगे। यही बात कांग्रेस के बड़बोले राष्ट्रीय महासचिव दिगविजय सिंह भी टी.वी चैनलों पर दुहरा रहें हैं लेकिन लोकपाल बिल के लिए बनी केन्द्र सरकार की ड्राफ्टिंग कमिटी को इससे एतराज है। केन्द्र सरकार इस बिल के दायरे में बड़े मछलियों को नहीं लाना चाहती जो सही मायने में भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेवार हैं। योग गुरू और आर्युवेदिक दवाओं के व्यापारी बाबा रामदेव ने विदेशों में जमा काले धन का मामला उठाया और इसे देश में वापस लाने की बात की। अपनी इस मांग को लेकर बाबा ने अनशन की और केन्द्र सरकार ने आधी रात को ही बाबा को समर्थकों सहित दिल्ली से बाहर का रास्ता दिखा दिया। बाबा की तो हालत यह हो गई कि समर्थकों को मार खाते छोड़ उन्हें सलवार समीज पहन कर भागने के क्रम में पकड़ा गया। अब इस मसले को लेकर दूसरे सवाल खड़े हो रहें हैं और यह पूरा मुद्दा ही भटक कर दूसरी तरफ चला गया है। एक तो समर्थकों को पुलिस के अत्याचार के सामने छोड़ बाबा रामदेव का भयभीत होकर मंच से कूदकर भाग जाना यह महात्मा गांधी के नाम पर सत्याग्रह का ढोंग करने वालों के लिए काफी शर्मनाक है और दूसरा उनके दायें हाथ आचार्य बालकृष्ण का दिल्ली में बैठ कर खुले आम इस कार्यक्रम के लिए करोड़ो रू0 जमा करना और फिर तीन दिनों तक अचानक गायब हो जाना। ये ऐसे मसले हैं जो काले धन के सवाल पर बाबा की ईमानदारी और आंदोलन की दिशा पर संदेह पैदा करते हैं। पहले तो बाबा के दिल्ली आने पर केन्द्र के चार चार मंत्रियों ने हवाई अड्डे पर जाकर बाबा से वार्ता की और आगे भी दोनों तरफ से वार्ता और प्रेसवार्ता का दौर चलता रहा और एक समय लगा कि केन्द्र सरकार ने बाबा की सभी मांगे मान ली है और अब बाबा अनशन वापस ले लेंगे। लेकिन कपील सिब्बल ने जब बाबा का अनशन शुरू करने के पहले के एक समझौता पत्र को मिडिया के सामने दिखा दिया तो इससे बाबा नाराज हो गयें और उन्होंने अनशन जारी रखने का फैसला कर लिया। इस गुप्त समझौते पत्र से उन हजारों लोगों को जो बाबा के साथ रामलीला मैदान में मौजूद थे और करोड़ो लोग जो टी.वी चैनलों पर बाबा का साथ दे रहें थे, उन्हें बाबा ने अनजान रख धोखा दिया। खैर जो भी हो यह आंदोलन एक तमाशा बन गया और कांग्रेस, भाजपा और बाबा सबों ने सारी मर्यादाओं को ताक पर रख काल धन के मुद्दे को दरकिनार कर एक दूसरे को कोसने लगे। कांग्रेस के लोग तो इस पूरे तमाशे के पीछे आरएसएस का हाथ बता रहें है। खैर इसमंे आरएसएस का हाथ है या किसी और का यहां यह मसला ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। सवाल हैं कि इतनी जल्द काले धन का मुद्दा कहां विलीन हो गया। बाबा रामदेव पहले तो आधी रात के अत्याचार के लिए कांग्रेस के साथ साथ मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी को कोसते रहे लेकिन जब केन्द्र सरकार ने बाबा द्वारा संचालित कंपनियों के लिए एक जांच समिति बना तो बाबा ने केन्द्र सरकार को माफ कर दिया! वहीं भाजपा जो मुख्य विपक्षी पार्टी है आखिर वह बाबा के आंदोलन के पहले काले धन के सवाल पर चुप क्यों थी ? इसका जवाब ना तो भाजपा के लोग दे रहें हैं और ना ही मिडिया ने कभी इस सवाल को उठाया। इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस ने तो साफ कर दिया है कि उसके लिए काला धन कोई मुद्दा नहीं है। वैसे कांग्रेस ने जरूर काले धन को वापस लाने के लिए कानून बनाने की बात की है लेकिन हमारे यहां इस तरह के कानूनों का क्या हश्र होता है यह किसी से छिपी नहीं है। केन्द्र सरकार में एक खेमा तो ऐसा भी है जो काले धन को वापस लाने के बजाए इसपर सिर्फ टैक्स वसूलने की वकालत कर रहा है जैसा कि कुछ युरोपीय देशों का कानून है। अभी पेट्रोल की कीमतों को लेकर जो थोड़ा बहुत हल्ला हुआ उसमें यह साफ हो गया कि यदि सरकार अपना टैक्स कम कर दे तो पेट्रोल की कीमतों को कम किया जा सकता है। लेकिन सरकार ने यह ठान लिया है कि जितना ज्यादा संभव हो सके और जहां से भी हो टैक्स वसूला जाए और इस टैक्स की लूट से देश में ए. राजा जैसे लोग जनता को लूटते रहें और विदेश में जमा काला धन और बढ़ता जाए। अभी एक टीवी चैनल ने एक बहस कार्यक्रम में इस बात को उठाई कि मारिशस से जो काला धन देश के अन्दर आ रहा है उससे देश में कई कारखाने खुल रहें हैं, लोगों को रोजगार मिल रहा है, और वह धन कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का लगभग आधा है। इस बहस में कांग्रेस और भाजपा के नेता समेत पत्रकार और समाजिक संगठनों के लोग शामिल थे। लेकिन यहां यह बात किसी ने नहीं उठाई कि सवाल देश में किस पैसे से कारखाने खुल रहें हैं उसका नहीं है बल्कि सवाल है कि देश में आम जनता द्वारा मेहनत से कमाई गई दौलत कब तक विदेशी बैंको मंे जमा होता रहेगा, इस पैसे से भी तो देश में कारखाने खुल सकते हैं। जब यह बात साफ हो चुका है कि विदेशों में जमा काला धन हमारे विदेशी कर्ज से लगभग दुगणा है तो फिर सवाल यह उठना चाहिए कि उस काले धन को वापस कैसे लाया जाए। इस बहस में यह भी बात सामने आई कि विदेशी कंपनियां देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण यहां पूंजी निवेश नहीं कर रहें हैं तो फिर यह भ्रष्टाचार कैसे खत्म होगा, इस बात पर बहस क्यों नहीं होती। बाबा का अनशन देशक के अन्य बाबाओं ने तुड़वा दिया हैं और मिडिया के माध्यम से इस पूरे आंदोलन के संदर्भ मंे जो खबरें आ रहीं हैं वह अब काला धन को देश के अन्दर लाने के बजाए इसे लाने के मुश्किलों और कानूनांे पर ज्यादा केन्द्रीत है। अब देखना यही है कि बाबा रामदेव हों या अन्ना हजारे इन लोगों ने जिन मुद्दों को उठाया है उनके लिए उनकी लड़ाई किस हद तक जाती है और इस देश की सरकार जिसे काला धन हो या फिर भ्रष्टाचार और महंगाई का मुद्दा, निर्णय तो उसे ही लेना है, वह इन मुद्दों पर क्या करती है ? अभी एक खबर आ रही है कि सरकार बहुत जल्द रसोई गैस और डीजल की कीमतों में बढ़ोत्तरी करने जा रही है। यानि काला धन हो या भ्रष्टाचार और महंगाई का सवाल लगता है कि जनता फिर ठगी का शिकार होने जा रही है।
शशिकान्त


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