स्वामी विवेकानन्द की 154 वीं जयंती पर विशेष ;
(12 जनवरी 1863 - 4 जुलाई 1902)
स्वामी विवेकानन्द को याद करते हुए एक दिलचसप प्रसंग का जिक्र कर रहा हॅंू......
कलकत्ता में स्वामी जी से कई लोग मिलने आते थे. एक बार एक गोरक्षा मण्डल का प्रचारक उनके पास आया.
प्रचारक: स्वामी जी प्रणाम, यह लिजीए.
स्वाजी जी: क्या है यह ?
प्रचारक: गोमाता का चित्र.
स्वाजी जी: अच्छा दिजीए, आप क्या करते हैं ?
प्रचारक: मैं गोरक्षणमंडल का सदस्य हॅंू.
स्वाजी जी: आपके इस मंडल का उद्देश्य क्या है ?
प्रचारक: हम लोग अपने देश की गायों को कसाईयों से छुड़ाते हैं. जगह-जगह गोशालायें बनाकर वहां रोगी, कमजोर और कसाई के हाथ से छुड़ाई गई गायों का पालन-पोषण करते हैं.
स्वाजी जी: आपका कार्य अच्छा है, पर इस कार्य को चलाने के लिए के लिए धन की क्या व्यवस्था करते हैं आप ?
प्रचारक: आप जैसे उदार लोग दया भाव से जो दे देते हैं, उसी से यह खर्च चलाते हैं हम लोग.
स्वाजी जी: मैं स्वयं एक भिक्षु हॅंू. मैं कुछ भी नहीं दे सकता. यह बताइए, अभी तक आपके पास कितना पैसा इकट्ठा हुआ है ?
प्रचारक: मारवाड़ी व्यापारी इस काम में उदारता से पैसा देते हैं. उन लोगों ने इस काम के लिए बहुत पैसा दिया है.
स्वाजी जी: मध्य भारत में भयंकर अकाल पड़ा है. सरकार ने स्वयं नौ लाख लोगों के मरने की बात अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट की है. आपके मंडल ने इन भूखे लोगों की मदद करने के लिए कुछ सोचा है क्या ?
प्रचारक: नहीं-नहीं, हम लोग ऐसे अकाल-वकाल के काम में नहीं पड़ते, हमारा यह मंडल गोमाता का रक्षण करने के उद्देश्य से स्थापित हुआ है.
स्वाजी जी: प्रचारक महोदय, लाखों लोग बिना अन्न के मर रहें हैं, उन अकाल-ग्रस्तों की मदद करना आपके लिए सहज है, फिर भी आप सहायता नहीं करेंगे ?
प्रचारक: नहीं यह अकाल यानी उनके पूर्व के कर्मों का फल है. जैसी करनी वैसी भरनी, है कि नहीं ?
स्वाजी जी: आप मुझे कर्मवाद बता रहे हैं ? तो सुनिए, मरते हुए आदमी को मुट्ठी भर अनाज देने के बजाय पशु- पक्षियों के प्राण बचाने के लिए के लिए बोरों अन्न बांटने के लिए जो आगे आते हैं, उनके बारे में मुझे जरा भी सहानुभूति नहीं है. आदमी अपने कर्म से मरता है, ऐसा कह कर यदि हाथ खड़े कर दिए जायें, तो दुनियां में प्रयत्न का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा और फिर गायों को बचाने के लिए आपके इन प्रयत्नों का क्या मतलब है ? अपने पूर्वजन्म के कुकर्मो के कारण ही उन्हें मनुष्य के बजाय गाय का जन्म प्राप्त हुआ है. अपने कर्माें के फल के कारण ही वे कसाईयों के हाथ में पड़ती हैं और काटी जाती हैं. उनके लिए मेहनत कर काम करने का क्या मतलब है ?
प्रचारक: (घबराकर) आप जो कह रहे हैं, वह सच है, पर शास्त्रों में बताया गया है कि गाय हम लोगों की माॅं है.
स्वाजी जी: (हॅंसकर) हाॅं गाय हमारी माता है, यह तो स्पष्ट है दिखाई पड़ता है, अन्यथा आपके जैसे सुपुत्र और किसकी कोख से पैदा होते ?.....
(12 जनवरी 1863 - 4 जुलाई 1902)
स्वामी विवेकानन्द को याद करते हुए एक दिलचसप प्रसंग का जिक्र कर रहा हॅंू......
कलकत्ता में स्वामी जी से कई लोग मिलने आते थे. एक बार एक गोरक्षा मण्डल का प्रचारक उनके पास आया.
प्रचारक: स्वामी जी प्रणाम, यह लिजीए.
स्वाजी जी: क्या है यह ?
प्रचारक: गोमाता का चित्र.
स्वाजी जी: अच्छा दिजीए, आप क्या करते हैं ?
प्रचारक: मैं गोरक्षणमंडल का सदस्य हॅंू.
स्वाजी जी: आपके इस मंडल का उद्देश्य क्या है ?
प्रचारक: हम लोग अपने देश की गायों को कसाईयों से छुड़ाते हैं. जगह-जगह गोशालायें बनाकर वहां रोगी, कमजोर और कसाई के हाथ से छुड़ाई गई गायों का पालन-पोषण करते हैं.
स्वाजी जी: आपका कार्य अच्छा है, पर इस कार्य को चलाने के लिए के लिए धन की क्या व्यवस्था करते हैं आप ?
प्रचारक: आप जैसे उदार लोग दया भाव से जो दे देते हैं, उसी से यह खर्च चलाते हैं हम लोग.
स्वाजी जी: मैं स्वयं एक भिक्षु हॅंू. मैं कुछ भी नहीं दे सकता. यह बताइए, अभी तक आपके पास कितना पैसा इकट्ठा हुआ है ?
प्रचारक: मारवाड़ी व्यापारी इस काम में उदारता से पैसा देते हैं. उन लोगों ने इस काम के लिए बहुत पैसा दिया है.
स्वाजी जी: मध्य भारत में भयंकर अकाल पड़ा है. सरकार ने स्वयं नौ लाख लोगों के मरने की बात अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट की है. आपके मंडल ने इन भूखे लोगों की मदद करने के लिए कुछ सोचा है क्या ?
प्रचारक: नहीं-नहीं, हम लोग ऐसे अकाल-वकाल के काम में नहीं पड़ते, हमारा यह मंडल गोमाता का रक्षण करने के उद्देश्य से स्थापित हुआ है.
स्वाजी जी: प्रचारक महोदय, लाखों लोग बिना अन्न के मर रहें हैं, उन अकाल-ग्रस्तों की मदद करना आपके लिए सहज है, फिर भी आप सहायता नहीं करेंगे ?
प्रचारक: नहीं यह अकाल यानी उनके पूर्व के कर्मों का फल है. जैसी करनी वैसी भरनी, है कि नहीं ?
स्वाजी जी: आप मुझे कर्मवाद बता रहे हैं ? तो सुनिए, मरते हुए आदमी को मुट्ठी भर अनाज देने के बजाय पशु- पक्षियों के प्राण बचाने के लिए के लिए बोरों अन्न बांटने के लिए जो आगे आते हैं, उनके बारे में मुझे जरा भी सहानुभूति नहीं है. आदमी अपने कर्म से मरता है, ऐसा कह कर यदि हाथ खड़े कर दिए जायें, तो दुनियां में प्रयत्न का कोई मतलब ही नहीं रह जाएगा और फिर गायों को बचाने के लिए आपके इन प्रयत्नों का क्या मतलब है ? अपने पूर्वजन्म के कुकर्मो के कारण ही उन्हें मनुष्य के बजाय गाय का जन्म प्राप्त हुआ है. अपने कर्माें के फल के कारण ही वे कसाईयों के हाथ में पड़ती हैं और काटी जाती हैं. उनके लिए मेहनत कर काम करने का क्या मतलब है ?
प्रचारक: (घबराकर) आप जो कह रहे हैं, वह सच है, पर शास्त्रों में बताया गया है कि गाय हम लोगों की माॅं है.
स्वाजी जी: (हॅंसकर) हाॅं गाय हमारी माता है, यह तो स्पष्ट है दिखाई पड़ता है, अन्यथा आपके जैसे सुपुत्र और किसकी कोख से पैदा होते ?.....
No comments:
Post a Comment