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Tuesday, April 5, 2016

आईए प्रकृति के साथ मिलकर पानी के लिए आत्मनिर्भर बनें, हमें एक जल क्रान्ति की जरूरत है !!

माननीय प्रधानमंत्री जी, पक्ष-विपक्ष के सभी नेतागण, समाचार चैनलों, सभी समाजिक संगठनों और आम लोगों से अपील,

गैर जरूरी मुद्दों पर हो हल्ला बन्द किजीए !
आईए प्रकृति के साथ मिलकर पानी के लिए आत्मनिर्भर बनें, हमें एक जल क्रान्ति की जरूरत है !!

आज महाराष्ट्र, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, राजस्थान, झारखण्ड समेत देश के कई हिस्से में पीने के पानी के लिए हाहाकर मचा है. नौबत यहां तक आई कि महाराष्ट्र के लातूर में लोग पीने के पानी के लिए लड़ें नहीं इसके लिए धारा 144 तक लगा दिया गया. खेती-किसानी के लिए तो पानी का संकट पहले से ही कई राज्यों में है. लेकिन पानी सिर्फ गर्मियों में ही तब मुद्दा बनता है जब संकट अपने चरम पर रहता है और समाधान के नाम पर कुछ खानापूर्ति कर दिया जाता है. लेकिन ऐसी स्थिति में तो यह संकट हर गर्मी के मौसम में और बढ़ता ही जाएगा और कुछ वर्षों में अत्यन्त भयावह रूप ले लेगा. नदियों का जल स्तर कम हो रहा है, वे सूख रहें है, शहर हो या गांव हमारे डैम, तालाब, कुआं, चापानल सूख रहें हैं. एक तरफ पानी के सभी प्राकृतिक साधनो में कमी आ रही है वहीं हम जान-बूझकर पानी के स्रोतों को प्रदूषित भी कर रहें हैं, उसे जहर बना रहें हैं. गंगा की हम पूजा तो करते हैं लेकिन उसकी स्थिति भी सब जानते हैं. शहरों के तालाबों, आस-पास की नदियों में नालियों का पानी और हर तरह का औद्योगिक कचरा बहाया जा रहा है. प्रकृति के साथ मुनाफे के लिए मानवीय खिलवाड़ ने मौसम चक्र को पहले ही इतनी बुरी तरह से प्रभावित कर दिया है कि जब पानी की जरूरत होती है तो बारिश नहीं होती और जब खेतों में फसल पकती है, पानी की जरूरत नहीं होती है तो बेमौसम बारिश से फसल खराब हो जाती हैं. बाढ़-सूखा का खेल तो चलता ही रहता है.


फिर भी, अभी भी देर नहीं हुआ है. पानी चाहे पीने का हो या फिर खेती-किसानी और अन्य औद्योगिक जरूरतों के लिए हमें उसके सभी स्रोतों के प्रति गंभीर होकर इसका स्थायी समाधान निकालना चाहिए. यह भले ही तात्कालिक फायदा वाला राजनीतिक मुद्दा न हो लेकिन यह हमारे जिन्दा रहने का मुद्दा है, हमारे बच्चों के जिन्दा रहने का मुद्दा है. आज हम गैर जरूरी मुद्दों पर देश में बहस करते हैं जबकि देश को एक जल क्रान्ति की जरूरत है. जंगल बचाने-बढ़ाने, शहरों में तालाबों को भर कर बनाये जाने वाले बहुमंजली इमारतों पर रोक लगाने, नदियों-तलाबों को प्रदूषण मुक्त बनाकर उसके आस-पास हरित क्षेत्र बनाने, छोटे-बड़े सभी तरह के नदियों के डूब क्षेत्र पर किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगाने, नये-नये जल-स्रोतों को विकसित करने, बारिश के पानी को बचाने, उपयोग हो रहे पानी को पुनः उपयोग लायक बनाने, वाटर रिचार्ज सिस्टम के प्रति लोगों को जागरूक कर इये युद्ध स्तर पर लागू करने, अपने-आस पास ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाने जैसे उपायों के प्रति भी लोगों को जागरूक कर इये युद्ध स्तर पर लागू करने जैसे काम तो तुरन्त शुरू कर देना चाहिए.

मैं कोई जल वैज्ञानिक नहीं हूं, जितना जाना-समझा लिख कर अपील कर दिया, चिन्ता सिर्फ पानी का है.


एक अखबार से देश-दुनिया में पानी की स्थिति पर प्राप्त आंकड़ों को साथ में साझा कर रहा हूॅं:

- दुनिया में करीब 35 लाख लोग स्वच्छ पानी के अभाव में अपनी जान गवां देते हैं,
- 8 करोड़ 40 लाख लोगों की हर साल मृत्यु हो जाती है पानी से संबंधित बीमारियों की वजह से,
- दुनिया में लगभग 1 से 2 प्रतिशत पानी ही पीने याग्य है बाकी खारा या प्रदुषित है.
- करीब 2 अरब नौकरियां पानी से जुड़ी है. जल संकट आया तो इन पर होगा खतरा,
- 30 प्रतिशत और साफ पानी की जरूरत होगी 2030 तक,
- 40 प्रतिशत भारत और अफ्रीका के बच्चे गंदे पानी की वजय से अविकसीत रह जाते हैं,
- 2050 तक आज के मुकाबले ज्यादा सूखा पड़ने की आशंका,
- करीब 88 करोड़ लोगों के पास दुनिया में साफ पीने का पानी उपलब्ध नहीं है,
- हर 5 मिनट में एक बच्चा पानी से संबंधित बीमारियों के कारण दम तोड़ देता है,
- 80 प्रतिशत गंदे नाले से निकला पानी विकासशील देशों में नदियों, झीलों में छोड़ दिया जाता है,
- 1.8 अरब लोग 2025 तक ऐसे इलाके में रह रहे होंगे जहां भयंकर जल संकट होगा,
- 2 अरब से ज्यादा लोग दुनिया में पानी के लिए कूओं पर निर्भर हैं,

- 18 प्रतिशत आबादी को ही ग्रामीण भारत में स्वच्छ पेयजल मिल पाता है,
- संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक भारत पानी की गुणवत्ता के मामले में विश्व में 120 वें पायदान पर है,
- 33 प्रतिशत भारतीय घरों में ही अभी तक की जा सकी है साफ पेयजल आपूर्ति,
- 50 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण इलाकों में पेयजल आपूर्ति दूषित है,
- 2020 तक पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति एक हजार क्यूबिक मीटर से भी कम हो जाएगी,
- देश की राजधानी दिल्ली में 13 प्रतिशत लोगों को रोज नहीं मिल पाता है सप्लाई का पानी.

शशिकान्त सिंह.

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