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Friday, February 20, 2015

तथाकथित समाजवादियों ! का शाही तिलक: क्या प्रधानमंत्री का जाना उचित है ?

तथाकथित समाजवादियों ! का शाही तिलक: क्या प्रधानमंत्री का जाना उचित है ?

यहीं विचारों की अवसरवादिता और खोखलापन सामने आता है. जो लोग सीना ठोक कर सामाजिक न्याय, गरीबों, दलितों, दबे कुचलों, पिछड़ों की राजनीति की बात करते हैं दरअसल ये सब बाते उनके लिए सत्ता में आने या बने रहने का साधन मात्र होता है. आज गरीबांे की कितनी ही बेटियों की बारात पैसों के अभाव में लौट जाती हैं, मासूम औरतें दहेज हत्या की बलि चढ़ जाती हैं, एक बूढ़ा बाप अपनी बेटी की शादि न कर पाने की असमर्थता में दिनों - दिन घुटता रहता है, देश में लाखों-करोड़ों लोग ऐसे हैं जो दहेज जैसे कुरितियों के कारण बेटी पैदा होने पर उसे न चाहते हुए भी बोझ समझने लगते हैं. यह एक सच्चाई है जिसे किसी गरीब पिता से जाकर पूछिये जवाब मिल जाएगा.
क्या ऐसे में इन तथाकथित समाजवादियों ! का शाही तिलक, जिसपर करोड़ों रू0 खर्च हो रहा है उचित है ? क्या यही सामाजिक न्याय है ? और क्या इस तरह के कार्यक्रमों में देश के प्रधानमंत्री का जाना उचित है ? क्या यह देश के गरीबों को मुंह चिढ़ाने जैसा नहीं है ? क्या यह उस पिता के मुंह पर तमाचा नहीं है जो अपनी बेटी से प्यार तो करता है लेकिन समाज की कुरितियों और उसके अभावग्रस्त जिन्दगी ने उसे अपनी ही बेटी को बोझ समझने के लिए मजबूर कर दिया..................................लगता है सामाजिक न्याय के इन ठेकेदारों के आदर्शों का बोझ सिर्फ गरीबों के कंधों को ही उठाना होगा और उनके कंधे पर बैठकर तथाकथित सामाजिक न्याय के ठेकेदार अपने पूरे खानदान को विधानसभाओं, लोकसभा और राज्यसभा में भेज कर गरीबों के कंधे का बोझ और बढ़ाते रहेंगे.........................आज जरूरत है ऐसे ढकोसलों को वर्ग दृष्किोण से देखने की..................................जवाब मिल जाएगा.........................इसलिए कि तथाकथित समाजवादियों ! के शाही तिलक से गरीबों, दलितों, दबे कुचलों, पिछड़ों के बीच क्या संदेश देना है यह तो वे तथाकथित सामाजिक न्याय के ठेकेदार ही तय करंगे !

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