लाहोर के चे - बोलिविया के भगत सिंह .
जाने क्यूँ लगता है कि
आधी रात के घटाटोप अँधेरे में
खद्दर की सफ़ेद टोपियाँ और झकाझक सफ़ेद कुर्ते पाजामे पहनकर
आने की बजाय,
धूम मचाती
मजदूरों की मुट्ठियों में मजबूत पकड़ वाले हथोडों
और किसानों के हाथों में लहराती दरान्तियों के साथ
खेतों-खलिहानों और कारखानों से गुजरती
दिनदहाड़े आई होती आज़ादी .
तो
दुनिया को मार्च की एक तारीख को लाहोर में
छत्तीस बरस पहले ही मिल जाता चे, भगत सिंह के नाम से.
और अक्टूबर की किसी तारीख को
बोलिविया में लड़ते हुए शहीद होते
भगत सिंह, अर्नेस्तो चे गुएवारा का नाम धर कर.
Courtesy face book.
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