भारत में मनाये जाने वाले प्रमुख धार्मिक त्योहारों में दशहरा भी एक है. यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. दशमी के दिन बुराई का प्रतीक रावण का पुतला दहन कर लोग इसी सिलसिला को दुहराते रहते हैं. अखबारों में, इलेक्ट्रॅनिक चैनलों में और कई तरीकों से लेखों, प्रवचनों, बहसों इत्यादि के जरिए हमें इस गौरवशाली परंपरा की याद दिलाई जाती है. यह सिलसिला अब पहले से और भी ज्यादा तेज हो गया है..................और इसके कई मायने हो गये हैं................ (संपादित)
यह कितना अजीब बात है. सैकड़ों वर्षों से इस परंपरा को दुहराते रहने के बावजूद आज तक बुराई पर अच्छाई की जीत नहीं हो सकी, यानि रावण आज भी जिंदा है और कह सकते हैं कि वह पहले से ज्यादा मजबूत हुआ है. तभी तो आज हमारे देश में अमिरी व गरीबी के बीच खाई तेजी से बढ़ रही है..........लगातार देश में भ्रष्टाचार के नये - नये और बड़े - बड़े मामले सामने आते रह रहें हैं और इनमें वैसे लोग ही शामिल हैं जिन्हें हमने देश को चलाने का जिम्मा दे रखा है. भारत में भूख बढ़ी है, गरीबी बढ़ी है, रोजगार के अवसर कम हो रहें हैं, सरकार सभी मुनाफा कमाने वाली सार्वजनिक क्षेत्रों का नीजिकरण कर रही है, महिलाओं की असुरक्षा बढ़ी है, आत्महत्यायें बढ़ी हैं, बेहतर शिक्षा - स्वास्थ्य - सामाजिक सुविधायें आम लोगों की पहुंच से दूर किये जा रहें हैं, देश में आतंकवाद अपने विभिन्न रूपों में पहले से ज्यादा मजबूत हुआ है, लोकतांत्रिक आंदोलनों पर दमन बढ़ा है, हमारे खनिज संपदा व अन्य जरूरी प्राकृतिक संसाधानों की लूट बढ़ रही है, देश में क्षेत्रीयतावाद और पहचान की राजनीति को तेजी से हवा दिया जा रहा है, राष्ट्रीयता को धर्म के दायरे में सिमटने की साजिश कर लोगों का बांटने का प्रयास किया जा है, धर्म को कभी राजनीति के लिए तो कभी व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.........हमारी धर्मिक भावनाओं को भड़काकर एक दूसरे से लड़वाने का काम किया जा रहा है................................और न जाने एैसे कितनी ही बुराईंयां है जो पहले से ज्यादा बढ़ी है...........................................आखिर ऐसा क्यों ? हम इस पर अलग तरीके से सोचते हैं. रावण का पुतला दहन कर हम अपनी जिम्मेवारी से मुक्त हो जातें हैं और अगले दिन से इस व्यवस्था में तकलीफांें को कोसते हुए इसका दोष कभी समाज को, कभी राजनीति को, कभी किस्मत को, कभी पूर्वजनम को तो कभी अपने पुरखों को देते हैं और फिर मंदिर जाकर इनसे मुक्ति की प्रार्थना करते हैं और निर्मल बाबा जैसे लोगों से रास्ता पूछते हैं..................................(संपादित).........तब फिर सवाल है कि आखिर रावण (बुराई का प्रतीक) कब मरेगा ? या वह हमंे मारता रहेगा................क्या वह अमरत्व का वरदान लेकर आया है ? नहीं दरअसल हम अब तक सिर्फ उसके प्रतीकों को ही जलाते हैं और उसमें अपनी खुशिययां और बदलाव ढूंढते रहे हैं. हम यह भूल गये हैं कि रावण को मारने के लिए राम को भयंकर युद्ध करना पड़ा था...........हम कहते हैं कि काश आज एक और भगत सिंह होते......लेकिन हम भूल जातें हैं कि भगत सिंह वैचारिक दृढ़ता से लैस होकर अपने देश के लिए हंसते - हंसते अपनी कुरबानी दी थी.............आज हमारे देश में जो हालात हैं...उसके लिए यह जरूरी है कि हम भी उसी वैचारिक दृढ़ता से लैस होकर सड़कों पर उतरे...............संघर्ष करें.....................दोस्त और दुश्मन की पहचान अपने विवेक से करें..................देश की बदहाली के लिए जो लोग भी जिम्मेवार हैं उनके खिलाफ एकजूट होकर व्यापक संघर्ष की ओर बढ़ें.................................हाल के दिनों में जिस तरह से महंगाई, भ्रष्टाचार, जनता के खजाने की लूट, काॅरपोरेट सेक्टर, देशी विदेशी बड़े- बड़े उद्योगपतियों को फायदा और आम जनता की बुनियादी सुविधाओं में कटौतियों का सिलसिला तेज हुआ हैै, उसके लिए कौन जिम्मेवार हैं................................सरकार बदल देने से कभी इस समस्या का समाधान नहीं होगा. इसके लिए नीतियों में दबलाव के लिए हमें अपनी आवाज उठानी होगी. हमारी सरकारें जिन नवउदारवादी आर्थिक नीतियों की वकालत करती है वह सिर्फ साम्राज्यवादी हितों को पूरा करता है हमारे देश के आम लोगों का नहीं और साम्राज्यवाद मानवता का असली दुश्मन है जो कभी तालिबान जैसे रूढ़ीवादी ताकतों का इस्तेमाल करता है..........कभी आर्थिक प्रतिबंधों के जरिए हमें डराता है तो कभी अपनी ताकत का धौंस दिखाता है..........और हमारे हुक्मरान उसकी हर बातें मानते हैं क्योंकि उनके लिए वही दोस्त है और इस देश की आम जनता दुश्मन ! इसलिए भगत सिंह ने अपनी शहादत के पहले एक बार कहा था कि इस देश को आजादी तो मिल जाएगी लेकिन जब तक इस व्यवस्था को मेहनकतशों के हित में नहीं बदला जाएगा तब तक शोषण का यह सिलसिला जारी रहेगा यानि गोरे आंग्रेजो से मुक्ति मिला जाएगी लेकिन काले अंगे्रज राज करते रहेंगे..........................................(भगत सिंह के कथन का सार)................इसलिए आईए हम इंसान पर इंसान के शोषण के खिलाफ संघर्ष को तेज करें..........(संपादित)...........और एक मुक्म्मल बदलाव की ओर आगे बढ़ें ...................................................
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