गांधी जी के बंदर तीन : Shashikant Singh
मन में इनकी बातें हीन
तीनों ढोंगी थे ये साले
खद्दर चेलों के रखवाले
अंधा तो जी भर के उछला
चिल्ला-चिल्ला कर वह बोला
रोटी-कपड़ा मांग-मांग कर
क्यों लेते हो इनसे पंगा ?
देखो हो जाएगा दंगा
पीछे से बहरा भी बोला
अच्छी बाते क्यों सुनते हो ?
उंचे सपने क्यों बुनते हो ?
पहने हैं, गांधी को चोला
भरने दो तुम इनका झोला
बोल न पाया गूंगा लेकिन
देख रहा था सबकुछ लेकिन
सुन रहा था सबकुछ लेकिन
भीतरघात की बातें मन में
खादी का कुर्ता था तन में
घूम-घूम कर भेले जन में
सोच रहा था मन ही मन में
कैसे तोड़ूं इनको मैं ?
कैसे फोड़ूं इनको मैं ?
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