14 अप्रैल, 2016 को डाॅ0 भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयन्ती है. केन्द्र व राज्य सरकारें, कई राजनीतिक दल, सामाजिक संगठन और दलित मुद्दों पर काम करने वाले लोग इस अवसर पर अपने-अपने स्तर से कई तरह के आयोजन कर रहें हैं. कुछ लोगों के लिए यह एक अवसर है अंबेडकर के बहाने दलित समाज के प्रति चिन्ता व्यक्त कर खुद को उनका हमदर्द बताने का, कुछ लोगों के लिए दलित विमर्श को आगे बढ़ाने और संविधान निर्माता के नाम पर उनको याद करने का एक मौका.
वैसे मेरा मानना है कि दलित समस्यायों को दलित चश्मे के बजाय वर्ग दृष्टिकोण से देखने, समझने और हल करने की दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है. अन्यथा यह सिर्फ अंबेडकर जयन्ती दिवस की खानापूर्ती, दलित मुक्ति के नाम पर जातिवादी राजनीति व चिन्तन, मायावती - रामबिलास पासवान और उदित राज जैसे नेताओं के इर्द-गिर्द आरक्षण और कुल मिलाकर वोट बैंक की राजनीति तक सिमट कर रह जाएगा और मूल समस्यायें जस की तस बनी रहेंगे.
Shashikant Singh.
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