आज अन्तरराष्ट्रीय मजदूर दिवस है.
आज श्रम को पूंजी की सत्ता से मुक्ति दिलाने, श्रम की गरिमा को पुनः स्थापित करने, शोषण के विरूद्ध संघर्ष की चेतना को जागृत करने, श्रम को मानव समाज के निर्माण की मूल प्रेरणा व संचालक शक्ति के रूप में प्रतिष्ठापित करने का संकल्प लेने का दिन है. लेकिन क्या आज के दौर में रोज खटने कमाने वाले उन लाखों करोड़ों मजदूरों के लिए इस दिन का कोई व्यवहारिक महत्व है ? ठीक है कई संगठन, मजदूर नेता आज रैली निकालेंगे, भाषण देंगे, मजदूर दिवस के गौरवशाली इतिहास को याद दिलायेंगे, अखबारों में विज्ञापन देंगे और अगले दिन अखबारों में अपनी तस्वीर और समाचार तलाशेंगे....................
और बेचारा रोज खटने कमाने वाला मजदूर ! वह आज भी काम तलाशेगा और कल भी......................और काम नहीं मिला तो किसी रैली-जुलूस में शामिल हो गया. मेरा व्यक्तिगत तौर पर यह मानना है कि आज मजदूरों के बीच भी वर्ग विभाजन काफी गहरा होता जा रहा है. एक ऐसा तबका है जिसे मजदूर कहलाने में शर्म आती है लेकिन मजदूर आंदोलनों में उनकी सक्रीयता बनी रहती है और इसका वे अपने हितों के लिए इस्तेमाल करते हैं. मसलन किसी सरकारी या निजी प्रतिष्ठान में एक ऐसा भी मजदूर है जिसे 30-40 हजार तक वेतन मिलता है (इन्हें मजदूर कहलाने में शर्म आती है क्योंकि ये साफ सुथरे कपड़े पहनते हैं, कारों में घूमते हैं बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाते हैं ) और उसी जगह एक ऐसा भी मजदूर है जिसे उचित मजदूरी व सम्मान के लिए भी काफी संघर्ष करना पड़ता है लेकिन उसकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं होता.................ऐसे भी नेता होते हैं जिनका श्रम से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है लेकिन वे मजदूर नेता बने रहते हैं. अब रही बात काम की तलाश में भटकते रोज खटने कमाने वाले मजदूरों की तो इसके लिए समय ही किसके पास है क्योंकि यहां उन्हें संगठित करने, उनके मुद्दों पर आंदोलन करने में मेहनत बहुत ज्यादा और मुनाफा काफी कम है. फिर भी आज मजदूर दिवस है इसलिए तमाम मजदूर भाईयों को शुभकामना !
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