भगत सिंह लोकतंत्र और हम : Shashikant Singh
(१)
जब, इस दौर में,राजनीती का अपराधिकरण
और
अपराध का राजनीतिकरण हो रहा हो,
गली-गली, पागल कुत्तों की तरह
दुर्दांत अपराधी विचरण करें
जिनकी भौं भौं me हाँ हाँ कर
सरकारी महकमा dum हिलाए,
phir क्या आश्चर्य!
कैदखाने की चक्की में पिसता बेगुनाह
ख़ुद को कोसे और मर जाए।
(2)
apradhiyon se भागते bhagte लोग
baar baar apradh ke शिकार हों,
राजनीती से ख़ुद को परे समझ
bhrast राजनीती के shikar हों,
कुछ tej tarrar yuva, bhrast राजनीती me agrasarहों
कुछ hatotsahit हो, अपराध मे agrasar हों,
कुछ punjivadi bayar मे bhatakte हुए
बाजार के kuen मे sama जायें,
फिर क्या आश्चर्य!
हमारी देश की satta
dalalon की rakhail बन जाए।
(3)
saamraajyavaadiyon के हाथों मर्यादा गिरवी रख,
कृषि प्रधान गरीब मुल्क की
भूखी और बेबस जनता के liye
videshon से मुर्गे और शराब मंगाई जाए,
अशिक्षित और नग्न बच्चों के लिए
कंप्यूटर और pizza मंगाई जाए,
सरकार इसे उदारीकरण से अलंकृत कर
vikas का नाम दे दे,
to क्या ashcharya!
mehanatkash kisano के atmhatyayon के darmyan
band godamon me anaj sadta जाए।
(४)
go हत्या nishedh andolno के बीच
sampradayik hatyaon की choot हो
mandir मस्जिद की vyuh रचना me
rastravaad की vyakhya हो,
to क्या ascharya!
ऐसे me kahin, krantigeet सुनी जाए
naujawan ekatra हो रहें हो,
कभी कोई yuva, भगत सिंह की raah चल दे,
to आज की loktantrik सरकार
उसे deshdrohi करार देकर
saja ऐ मौत सुना दे।
No comments:
Post a Comment