क्या कर रहे हो आजकल? : Shashikant Singh
चाय की चुस्कियों मे गुम,
मैं भूल गया था
९२ और गुजरात,
सांप्रदायिक फासीवाद के
इस खतरनाक दौर में
संकल्प लेने के बाद भी
gum हो चुका था
जेहन से मेरे
२३ मार्च।
११ सितम्बर के बाद
मैं भी असहमत था
अमेरिकी ऐलान से,
व्यक्त हुए थे विरोधी विचार
गरमागरम सभाओं में,
आग उगलते नारों के बीच
जलाये थे क्रोध में
बुश ke पुतले,
स्वाभाविक चिंता थी
इराकियों के प्रति।
इतना durbal और असहाय
आज से पहले
ख़ुद को
कभी नहीं पाया था,
जब उन्होंने पूछा
बड़े सहज भाव से,
क्या कर रहे हो आजकल?
शशिकांत.
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