प्रधानमंत्री का सूट ! और समाचार चैनलों/अखबरों/सोशल साईटों में चिरकुट नेताआंे की मुद्दों से परे बचकाना बहसों पर त्वरित प्रतिक्रिया:
अब तो यह साफ हो चुका है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत यात्रा के दौरान माननीय प्रधानमंत्री जी ने जो सूट पहना था (जिस पर काफी विवाद ! हुआ) उसका कपड़ा गुजरात के एक व्यवसायी ने अपने बेटे के विवाह निमंत्रण पत्र के साथ प्रधानमंत्री को उपहार स्वरूप दिया था. इस कपड़े से बने सूट को प्रधानमंत्री ने उस विवाह समारोह में और बाद में अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत यात्रा के दौरान पहना. अभी मोदी को मिले अन्य तोहफों के साथ इस सूट की भी निलामी चल रही है. अब तक इसकी बोली एक करोड़ पार कर गई है. उम्मीद है कि इसकी बोली अभी और आगे बढ़ेगी. खैर जो भी हो सूट और तोहफों में मिली अन्य चीजों की निलामी से जो पैसा आयेगा उसे गंगा सफाई अभियान के लिए दे दिया जाएगा जो एक सराहनीय कदम है.
अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता और तमाम पूर्वावग्रहों से परे मेरा यह मानना है कि इस सूट पर जितना हो -हल्ला हुआ, खासकर राहुल गांधी के उस तथ्यहीन और बचकाने बयान के बाद जब उन्होंने इसकी कीमत 10 लाख बतायी थी , वह देश और जनता के बुनियादी मुद्दों से परे दिशाहीन और अपरिपक्व राजनीति का परिचायक है. राहुल गांधी के बयान ने समाचार चैनलों/अखबारों को इसे समाचार! बनाने का मौका दिया और कांग्रेस समेत कुछ विपक्षी दलों के चिरकुट किस्म के प्राणियों को चैनलों में अपना चेहरा चमकाने का मौका दिया. खैर जो भी हुआ इससे इस सूट को और केन्द्र सरकार के महत्वकांक्षी गंगा सफाई अभियान को ही फायदा हुआ. इसलिए इसका श्रेय राहुल गांधी और सूट पर हो-हल्ला मचाने वाले प्राणियों को जरूर मिलना चाहिए. रही बात उपहार में सूट के कपड़े देने वाले व्यवसायी की तो वह अभी जरूर मुस्कुरा रहा होगा !
लेकिन, क्या यह उचित है कि लोगों के व्यक्तिगत जीवन, उनके रहन-सहन के तरीकों, पहनावे, मिलने वाले तोहफों जैसे विषयों पर टीका-टिपण्णी कर उन्हें राजनीतिक बहस का विषय बनाया जाय जबकि उसका नीतिगत मुद्दों, राजनीतिक क्रियाकलापों और व्यवहारों से दूर-दूर तक कोई मतलब ही नहीं है. मेरा सीधा मानना है कि देश के राजनेताओं को कौन क्या पहनता है, वह कितनी बार कपड़े बदलता है इस पर बहस करने के बजाय जनता के बुनियादी मुद्दांे पर बहस करनी चाहिए. आज की तारीख में ऐसे कई मुद्दें हैं, मसलन भूमि अधिग्रहण अध्यादेश, मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट, श्रम कानूनोें में संशोधन, सब्सीडी में कमी, ग्रामीण कौशल विकास योजना इत्यादी जिसपर सकारात्मक बहस होनी चाहिए क्योंकि ये नीतिगत मुद्दें हैं जिसका सीधा असर देश की जनता और उसके विकास पर पड़ता है. और देश की जनता यह जरूर जानना चाहती है कि इन मुद्दों पर विभिन्न राजनीतिक दलों का क्या नजरिया है और वे इन मुद्दों पर क्या कर रहें हैं. लेकिन इन मुद्दों पर बहस करने के बजाय कुछ माननीय नेतागण दिशाहीन बहसों को जन्म देकर समाचार चैनलों/अखबरों/सोशल साईटों में इन्हें बहस का मुद्दा बना देते हैं जिसका आम जनता और उनके बुनियादी मुद्दों से कोई लेना-देना ही नहीं होता. यह जनता को उनके वास्तविक मु्द्दों से गुमराह करती है जिसका फायद अन्ततः विरोध करने वालों को नहीं बल्कि जिसका विरोध किया जाता है, उसे ही होता है.......................इसलिए इस तरह का विवाद गैर जरूरी है जिसे हत्तोसाहित करना चाहिए नहीं तो आने वाले दिनों में इस पर भी बहस होगी कि प्रधानमंत्री कौन सा ब्रश इस्तेमाल करते हैं, नहाने में कौन सा साबुन इस्तेमाल करते हैं, कितनी बार बाथरूम जाते है.........................धन्य हो..............
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